सुरक्षित एवं टिकाऊ फसल उत्पादन हेतु मौसम परिवर्तन की चुनौतियों से निबटने पर जोर
रांची। कृषि निदेशक निशा उरांव सिंहमार ने सुरक्षित एवं टिकाऊ फसल उत्पादन सुनिश्चित करने तथा प्राकृतिक संसाधनों और जैवविविधता को नुकसान से बचाने हेतु मौसम परिवर्तन की चुनौतियों और पर्यावरण मुद्दों से निबटने के लिए प्रभावी रणनीति तैयार करने का आह्वान वैज्ञानिकों से किया है। उन्होंने कहा कि स्वास्थ्यकर खाद्य पदार्थों और उच्च मूल्य वाली फसलों की बढ़ती मांग के मद्देनजर अनुसंधान रणनीतियों में बदलाव करना चाहिए ताकि किसानों को बेहतर आय सुनिश्चित की जा सके।
सोमवार को बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के 41वें खरीफ अनुसंधान परिषद की दोदिवसीय बैठक को मुख्य अतिथि के रुप में संबोधित करते हुए उन्होंने रासायनिक उर्वरकों के विवेकपूर्ण इस्तेमाल पर जोर दिया ताकि उर्वरता बढ़ानेवाले और पौधों के लिए पोषकतत्वों का अवशोषण सुगम करनेवाले मिट्टी के सूक्ष्मजीवों की सुरक्षा और बढ़वार होती रहे। उन्होंने कहा कि राज्य की 10 लाख हेक्टेयर भूमि अम्लीय तथा तीन लाख एकड़ भूमि डिग्रेडेड है, फसल उत्पादन में इनका लाभकारी उपयोग करने के लिए वैज्ञानिकों को कार्य करना चाहिए। उन्होंने खेत और प्रयोगशाला के बीच की दूरी कम करने तथा प्रौद्योगिकी प्रसार में गति लाने के लिए प्रशासकों, योजनाकारों और वैज्ञानिकों के बीच बेहतर समन्वयन पर जोर दिया।
कृषि निदेशक ने कहा कि शीघ्र खराब होने वाले कृषि उत्पादों के संरक्षण और विपणन के लिए राज्य सरकार ने कृषि इंफ्रास्ट्रक्चर फंड बनाया है। सरकार की कृषि कल्याण योजनाओं के लाभुकों की सुगमता से पहचान हो सके, इसलिए प्रत्येक किसान का यूनिक आईडी बनाया जाएगा। झारखंड में कृषि केवल एक आजीविका नहीं है बल्कि सदियों से एक संस्कृति है, इसलिए परंपरागत कृषि तकनीकों के परिष्करण के लिए आधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल वैज्ञानिकों को करना चाहिए।
बीएयू के कुलपति डॉ ओंकार नाथ सिंह ने कहा कि राज्य सरकार के सतत सहयोग से विश्वविद्यालय शिक्षा, अनुसंधान, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और बीज उत्पादन के मोर्चे पर तेजी से आगे बढ़ रहा है। नए कालेजों में ढांचागत सुविधाओं और शिक्षकों-कर्मियों की कमी जैसे मुद्दों का समाधान भी विश्वविद्यालय और सरकार के आपसी समन्वय से शीघ्र हो जाने की उम्मीद है।
बिहार कृषि विश्वविद्यालय, भागलपुर के कुलपति डॉ एके सिंह ने सुझाव दिया कि प्रत्येक वैज्ञानिक के लिए दो शोध परियोजनाओं का संचालन अनिवार्य कर दिया जाना चाहिए। मौलिक अनुसंधान को बढ़ावा देने के लिए राज्य सरकार को प्रत्येक पीएचडी विद्यार्थी के लिए ₹50000 तथा एमएससी विद्यार्थी के लिए ₹25000 प्रतिवर्ष आवंटित करना चाहिए।
अनुसंधान निदेशक डॉ ए वदूद ने कहा कि गत वर्ष रिकॉर्ड 72 लाख टन खाद्यान्न का उत्पादन हुआ जिसमें से 51 लाख तक केवल धान है । उन्होंने कहा कि हाल के वर्षों में कुल वार्षिक बारिश में इजाफा हुआ है किंतु बारिश वाले दिनों की संख्या में कमी आई है। इससे मानसून सीजन में कई बार लंबी शुष्क अवधि आ जाती है जिससे महत्वपूर्ण चरणों में फसल का विकास प्रभावित होता है।
बैठक के वाह्य विशेषज्ञ पूर्व शोध निदेशक डॉ डीके सिंह द्रोण ने कहा कि राज्य सरकार को शोध परियोजनाओं के संचालन के लिए भी विश्वविद्यालय को अनुदान देना चाहिए ताकि क्षेत्रीय अपेक्षाओं, स्थानीय जरूरतों और किसानों की प्राथमिकताओं के अनुरूप बेहतर शोध कार्य किये जा सकें।
डॉ राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, समस्तीपुर के मृदा विज्ञान विभाग के पूर्व अध्यक्ष डॉ एसबी पांडेय ने कहा कि किसी भी कृषि विश्वविद्यालय की पहचान-प्रतिष्ठा उसकी बिल्डिंग या ढांचागत सुविधाओं से नहीं बढ़ती, बल्कि राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय जर्नल में प्रकाशित शोधपत्रों से बढ़ती है, जो दूसरों के लिए ज्ञान का स्रोत होता है। उन्होंने जोर दिया के अनुसंधान कार्य के कुल बजट का 20% मौलिक अनुसंधान के लिए आवंटित किया जाना चाहिए।
डॉ कौशल कुमार ने ‘औषधीय पौधों सम्बन्धी नवोन्मेषी अनुसंधान’ विषय पर संक्षिप्त प्रस्तुतिकरण दिया। इस अवसर पर मात्स्यिकी विज्ञान महाविद्यालय के एसोसिएट डीन डॉ अखिलेश कुमार सिंह द्वारा लिखित पुस्तिका ‘कोयला खदान में मत्स्यपालन: एक तकनीक’ का लोकार्पण किया गया। पुस्तिका कोल इंडिया के सहयोग से बीएयू द्वारा संचालित एक शोध परियोजना के परिणामों पर आधारित है।
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