झारखंड सरकार ने बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों द्वारा वर्षों के प्रयोग और परीक्षण के बाद विकसित अधिक उपज देनेवाले, शीघ्र परिपक्व होनेवाले, कम पानी की जरूरत वाले और विभिन्न कीड़ों-रोगों के प्रति सहिष्णु और प्रतिरोधी 11 उन्नत फसल प्रभेद जारी कर दिया है। इनमें उड़द, अरहर, सोयाबीन, सरसों, बेबी कॉर्न (मक्का), मड़ुआ की एक-एक, बैगन की दो तथा तीसी की 3 किस्में शामिल हैं। वर्तमान में प्रयोग में लाए जा रहे प्रभेदों की तुलना में इन नये उन्नत प्रभेदों की उत्पादन क्षमता 15 से 20 प्रतिशत अधिक है।
झारखण्ड सरकार के कृषि सचिव अबूबकर सिद्दीक की अध्यक्षता में 10 अगस्त को राज्य वेरायटी रिलीज कमिटी की हुई बैठक में इन प्रभेदों को मान्यता दी गई। बैठक में बीएयू कुलपति डॉ ओंकार नाथ सिंह, अनुसंधान निदेशक डॉ ए वदूद, बीज निदेशक डॉ ऋषिपाल सिंह, आईसीआर शोध केंद्र पलाण्डु की वैज्ञानिक डॉ भावना, एनबीपीजीआर के डॉ एसबी चौधरी, केंद्रीय वर्षाश्रित उपराऊं भूमि चावल अनुसंधान केंद्र, हजारीबाग के डॉ एनपी मंडल, समेति निदेशक सुभाष सिंह, झारखंड बीज प्रमाणीकरण एजेंसी के सुरेंद्र कुमार, बीज परीक्षण प्रयोगशाला के अंजनी कुमार तथा इन किस्मों के विकास से जुड़े पौधा प्रजनन भी उपस्थित थे।
अब बीएयू के पौधा प्रजनकों, निदेशालय बीज एवं प्रक्षेत्र, क्षेत्रीय अनुसंधान केंद्रों, कृषि विज्ञान केंद्र एवं झारखंड के बीच ग्रामों द्वारा इन फसल प्रभेदों के प्रजनक बीज, आधार बीज और सत्यापित बीज पैदा करने का काम तेजी से बढ़ेगा ताकि किसानों के बीच इनकी उपलब्धता शीघ्र हो सके।
बुधवार को मीडिया प्रतिनिधियों से बात करते हुए बीएयू कुलपति डॉ ओंकार नाथ सिंह और अनुसंधान निदेशक डॉ वदूद ने कहा कि इन नए प्रभेदों के प्रयोग से राज्य में कृषि उत्पादन और उत्पादकता में काफी वृद्धि होगी तथा फसलों का आच्छादन भी बढ़ेगा। इन किस्मों की परिपक्वता अवधि कम रहने के कारण फसल गहनता भी बढ़ेगी तथा धान की कटाई के बाद खाली पड़े रहने वाले खेतों का उपयोग भी हो सकेगा।
कई वर्षों बाद बीएयू द्वारा विकसित प्रभेद जारी होने से विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों में उत्साह है। कुलपति ने किस्मों के विकास से जुड़े सभी वैज्ञानिकों और सहयोगी कर्मियों को बधाई दी है और कहा है कि बीएयू में आने के बाद से उनके लिए यह सर्वाधिक खुशी का दिन है।
जारी किए गए नए प्रभेदों की मुख्य विशेषताएं इस प्रकार हैं-
बिरसा उड़द-2: पौधा प्रजनन डॉ सीएस महतो द्वारा विकसित इस प्रभेद की उत्पादन क्षमता 12 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है तथा फसल लगभग 82 दिनों में परिपक्व होती है। एक फली में 6-7 बड़े भूरे दाने होते हैं। सर्कोस्पोरा, लीफ स्पॉट और जड़ विगलन रोग के प्रति प्रतिरोधी है तथा एफिड का न्यूनतम प्रकोप होता है।
बिरसा अरहर-2: डॉ नीरज कुमार द्वारा विकसित इस दलहनी प्रभेद में प्रोटीन की मात्रा 22.48 प्रतिशत है। अंडाकार दाना भूरे रंग का होता है। इसकी उत्पादन क्षमता 27.5 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है तथा परिपक्वता अवधि 235-240 दिन है। विल्ट और बोरर के प्रति प्रतिरोधक है।
बिरसा सोयाबीन-3: यह डॉ नूतन वर्मा द्वारा विकसित है। इसका बीज हल्का पीला रंग का अंडाकार होता है जिसमें तेल की मात्रा 19% तथा प्रोटीन 38.8 प्रतिशत है। उत्पादन क्षमता 27.5 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तथा परिपक्वता अवधि 115-120 दिन है। विभिन्न रोगों के और कीड़ों के प्रति सहिष्णु है तथा भुआ पिल्लू का प्रकोप नहीं होता है।
बिरसा भाभा मस्टर्ड-1: भाभा आणविक अनुसंधान केंद्र के सहयोग से बीएयू वैज्ञानिक डॉ अरुण कुमार द्वारा विकसित सरसों के इस प्रभेद का दाना बड़े आकार का होता है तथा तेल की मात्रा लगभग 40% है। अल्टरनरिया ब्लाइट, व्हाइट रस्ट और एफिड के प्रति सहिष्णु है। 112-120 दिनों में परिपक्व होने वाली इस किस्म की उत्पादन क्षमता 14.9 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है।
तीसी: मुख्य वैज्ञानिक डॉ सोहन राम द्वारा तिलहनी फसल तीसी की 3 किस्में विकसित की गई हैं। बिरसा तीसी-1 में तेल की मात्रा 34.6% है। इसकी औसत उपज 11.4 क्विंटल प्रति हेक्टेयर प्राप्त हुई किंतु उपज क्षमता 17.12 क्विंटल तक है। फसल 128-130 दिनों में तैयार होती है। यह किस्म अल्टरनरिया ब्लाइट और रस्ट के प्रति उच्च प्रतिरोधी तथा विल्ट और बडफ्लाई के प्रति मध्यम प्रतिरोधी है। जारी किए गए तीसी के दूसरे प्रभेद दिव्या में तेल की मात्रा लगभग 40% तथा हृदय के लिए लाभकारी ओमेगा 3 फैटी एसिड की मात्रा 60% है। औसत उपज 15.4 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तथा अधिकतम पर क्षमता 21.15 क्विंटल है। फसल 127 से 130 दिनों में परिपक्व होती है। विभिन्न रोगों और कीड़ों के प्रति प्रतिरोधी है। तीसी की तीसरी किस्म प्रियम में तेल की मात्रा 37% तथा ओमेगा 3 की मात्रा 53 प्रतिशत है। औसत उपज 12.5 क्विंटल तथा उपज क्षमता 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है। परिपक्वता अवधि 128-130 दिन है। अधिकांश रोगों और कीड़ों के प्रति प्रतिरोधक क्षमता है इसमें।
विरसा बेबी कार्न-1: मुख्य वैज्ञानिक डॉ मणिगोपा चक्रवर्ती द्वारा विकसित इस किस्म की औसत उपज क्षमता 16.7 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है तथा परिपक्वता अवधि 50-65 दिन है। फसल की कटाई 48वें दिन से शुरू हो जाती है और 65वें दिन तक जारी रहती है, तीन बार तुड़ाई होती है। कई रोगों के प्रति सहिष्णु है तथा अच्छी जल निकास वाली ऊपरी भूमि में खेती के लिए उपयुक्त है।
बिरसा मड़ुआ-3: पौधा प्रजनन विभाग के पूर्व अध्यक्ष डॉ जेड ए हैदर द्वारा विकसित यह किस्म नमी की कमी के प्रति सहिष्णु है तथा नेक और फिंगर ब्लास्ट के प्रति मध्यम प्रतिरोधी है। औसत उपज क्षमता 28.5 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तथा परिपक्वता अवधि लगभग 110-112 दिन है।
बैगन: क्षेत्रीय अनुसंधान केंद्र, चियांकी में कार्यरत रहने के दौरान डॉ अब्दुल माजिद अंसारी द्वारा बैगन की दो किस्में विकसित की गई हैं। बिरसा चियांकी बैगन-1 गोल अंडाकार होता है और बैक्टीरियल विल्ट के प्रति प्रतिरोधी तथा तना एवं फली छेदक कीट के प्रति सहिष्णु है। औसत उपज 400 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तथा परिपक्वता अवधि 110 दिन है। ऑर्गेनिक मैटर की अच्छी उपलब्धता वाली ऊपरी भूमि के लिए सिंचित परिस्थितियों में उपयुक्त है। बिरसा चियांकी बैगन-2 लंबे आकार की किस्म है जिसकी उत्पादन क्षमता 375 क्विंटल प्रति हेक्टेयर और परिपक्वता अवधि लगभग 120 दिन है। बैक्टीरियल विल्ट के प्रति प्रतिरोधक तथा तना एवं फली छेदक कीट के प्रति सहिष्णु है।
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