आईसीएआर-भारतीय कृषि जैव प्रौद्योगिकी संस्थान, गढ़खटंगा, रांची के निदेशक डॉ ए पट्टनायक ने कहा कि मोटे अनाज के उत्पादन में प्रसंस्करण एवं मूल्यवर्धन का समावेश जरूरी हो गया है। राज्य में अधिक उपज देने वाली सफेद मड़ुआ प्रभेद की खेती की काफी संभावना है। मड़ुआ के साथ राजमा और सोयाबीन की अंतरवर्ती खेती लाभदायक होगी। उन्होंने कहा कि व्यावसायिक मानसिकता वाले प्रशिक्षाणार्थी गांवों में समूह बनाकर व्यवसाय शुरू कर सकते है। आईआईएबी संस्थान इन समूहों को प्रसंस्करण उपकरण मुहैया करायेगा। इससे गांवों में कुटीर उद्योग की स्थापना को बल मिलेगा। ग्रामीणों की आय में बढ़ोतरी होगी। वे बिरसा कृषि विवि में 2 अक्टूीबर को पोषक अनाजों के विशेष संदर्भ में प्रसंस्करण विषय पर आयोजित दूसरा 5 दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम के समापन में बतौर मुख्यज अतिथि बोल रहे थे। प्रशिक्षण का आयोजन सामुदायिक विज्ञान विभाग ने किया था।
बीएयू के कुलपति डॉ ओएन सिंह ने कहा कि 5 दशक पहले मोटे अनाज को गरीबों का भोजन कहा जाना था। आज इसे अमीरों का भोजन कहा जाता है। वर्तमान में देश-विदेश के बाजारों में मोटे अनाज के उत्पाद काफी महंगे हैं। इसकी भारी मांग है। झारखंड में परंपरागत तौर पर मोटे अनाजों में मड़ुआ, गुंदली, सांवा, कोदो और रामदाना की खेती प्रचलित थी। बाजार की मांग को देखते हुए किसानों को इन फसलों की खेती के लिए प्रोत्साहित की जा सकती है। इसके लिए ग्रामीण स्तर पर मोटे अनाजों के प्रसंस्करण एवं मूल्यवर्धन तकनीकी को बढ़ावा समय की बड़ी मांग है। इस तकनीकी से मोटे अनाज के बाजार मूल्य को बढ़ाकर किसानों की आय में बढ़ोतरी संभव है। इस तकनीकी से व्यवसाय की शुरुआत लघु स्तर पर की जा सकती है। बाजार मांग के अनुरूप व्यवसाय का विस्तार किया जा सकता है। ग्रामीणों की आय सृजन में भी यह महत्वपूर्ण साधन साबित हो सकता है।
प्रशिक्षण की कोर्स को-ऑर्डिनेटर एवं सामुदायिक विज्ञान विभाग की अध्यक्ष डॉ रेखा सिन्हा ने कहा कि देश में कृषि उत्पादों का 10 प्रतिशत मात्र ही प्रसंस्कृत होता है, जबकि विदेशों में 60-70 प्रतिशत तक होता है। पौष्टिक फसलों की खेती से ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि आधारित उद्योगों को स्थापित और बढ़ावा देकर ग्रामीण विकास को गति दी जा सकती है। डीन एग्रीकल्चर डॉ एमएस यादव, डीन वेटनरी डॉ सुशील प्रसाद, डायरेक्टर एक्सटेंशन डॉ जगरनाथ उरांव एवं आईआईएबी के प्रधान वैज्ञानिक डॉ विनय कुमार सिंह ने भी अपने विचार व्यक्त किये।
मौके पर प्रशिक्षण के सभी 20 महिला प्रतिभागियों को बीएयू कुलपति एवं आईआईएबी निदेशक ने प्रमाण-पत्र देकर सम्मानित किया। प्रतिभागियों में कोयली टोप्पो ने मड़ुआ एवं अन्य फसलों के विभिन्न उत्पादों के उत्पादन की जानकारी को ग्रामीण महिलाओं के लिए लाभकारी बताया। सरिता खलको ने प्रसंस्करण एवं मूल्यवर्धन सबंधित व्यावहारिक तकनीकी को ग्रामीण कुटीर व्यवसाय के लिए सरल माध्यम एवं लाभकारी बताया।
समारोह का संचालन हरियाली रेडियो की समन्यवयक शशि सिंह और धन्यवाद आईआईएबी के वैज्ञानिक डॉ अविनाश पांडे ने किया। मौके पर डॉ डीके शाही, डॉ पीके सिंह, डॉ वी लकड़ा, डॉ एम चक्रवर्ती, डॉ बंधनु उरांव, एचएन दास, बसंती कोंगाडी एवं स्मिता श्वेड़ता आदि मौजूद थे।
The post मोटे अनाज के उत्पादन में प्रसंस्करण और मूल्यवर्धन का समावेश जरूरी : डॉ पट्टनायक appeared first on Birsa Agricultural University.