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नैनो यूरिया के उपयोग से फसल उत्‍पादन में 15 फीसदी तक बढ़ोतरी

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बिरसा कृषि विश्वविद्यालय में लगातार तीन वर्षो तक के नैनो यूरिया के फसल पर प्रभाव पर शोध हो रहा है। इसके परिणाम बेहतर एवं उत्साहजनक पाये गये हैं। इससे फसल उत्‍पादन में 15 फीसदी तक की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। नैनो यूरिया एक तरल उर्वरक है। इसके उपयोग से उर्वरक लागत में कमी आती है। अधिक उपज मिलने के साथ-साथ प्रदूषण का प्रभाव भी कम पाया गया है।

बीएयू कुलपति डॉ ओंकार नाथ सिंह ने कहा कि नैनो यूरिया के प्रयोग से अन्य उर्वरकों की उपयोगिता क्षमता एवं उपज क्षमता में बढ़ोतरी के साथ फसल गुणवत्ता में सुधार भी देखा जा रहा है। नैनो यूरिया तरल उर्वरक आने वाले वर्षो में झारखंड के गरीब किसानों के लिए भी वरदान साबित हो सकता है। राज्य में इस उर्वरक का फसलों पर प्रभाव का प्रदर्शन अधिकाधिक किसानों के खेतों में किये जाने की जरूरत है।

शोध परिणाम के मुताबिक नैनो यूरिया (तरल) 50 प्रतिशत तक दानेदार यूरिया को रीप्लेस कर सकता हैं। 50 प्रतिशत दानेदार यूरिया के प्रयोग के साथ नैनो यूरिया (तरल) का दो बार छिड़काव करने से अच्छा फसल प्रदर्शन देखने को मिला। इसमें पहला छिड़काव बुआई के 30 दिनों के बाद और पहली छिड़काव के 20 दिनों के बाद दूसरा छिड़काव किया गया। इस उपचार से फसल उपज में 10 से 15 प्रतिशत तक अधिक उपज प्राप्त हुआ।

डॉ शाही बताते हैं कि नैनो यूरिया (तरल) का 4 मिली लीटर मात्रा से एक लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना फायदेमंद होता है। यह छिड़काव साफ मौसम में सुबह 10 बजे से दोपहर 3 बजे तक किया जा सकता है। नैनो यूरिया (तरल) का प्रयोग सभी फसलों पर की जा सकती है। दरअसल फसलों की पत्तियों में स्टोमाटा खुला रहता है, जो नैनो यूरिया के कण को अवशोषित करता है। पत्तियों के माध्यम से यह कण पौधे के अन्य भागों में पहुंच जाता है।

इफको ने देश के 20 शोध केंद्रों और 11 हजार किसानों के खेतों में तकनीकी परीक्षण के बाद इस तरल उर्वरक को किसानों के लिए हाल में लांच किया है। इस तरल उर्वरक का एक बोतल करीब एक बोरी यूरिया के बराबर है। एक बैग दानेदार यूरिया का मूल्य 2,600 रुपये है। सब्सिडी के बाद यह 266 रुपये प्रति बैग की दर से किसानों को मिलता है। एक बोतल नैनो तरल यूरिया का मूल्य 240 रुपये है, जो एक बैग दानेदार यूरिया के बराबर होता है।

इफको नैनो तरल यूरिया कम लागत में ज्यादा फायदेमंद हो सकती है। इसके उपयोग से कृषि उत्पादन और किसानों की आय में वृद्धि, जल, वायु एवं मृदा प्रदूषण में कमी के साथ उपज की गुणवत्ता में वृद्धि होगी। यह परिवहन व भंडारण में किफायती एवं सुविधाजनक, सस्ता एवं प्रभावी और सभी के लिए सुरक्षित होगी।

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