बिरसा कृषि विश्वविद्यालय में बृहस्पतिवार को राष्ट्रीय कृषि उच्चतर शिक्षा परियोजना (नाहेप) द्वारा संघवी स्ट्रेटजी एंड कंसल्टिंग प्राइवेट लिमिटेड के सहयोग से ‘स्मार्ट कृषि एवं प्रत्येक प्लॉट से संबंधित डाटा की प्राप्ति’ विषय पर एक कार्यशाला का आयोजन किया गया।
मुख्य अतिथि के रूप में कार्यशाला को संबोधित करते हुए बिरसा कृषि विश्वविद्यालय और डॉ वाईएस परमार बागवानी एवं वानिकी विश्वविद्यालय, सोलन (हिमाचल प्रदेश) के पूर्व कुलपति डॉ परविंदर कौशल ने कहा कि धरातल पर कार्यान्वित की जानने योग्य फूलप्रूफ योजनाएं बनाने के लिए कृषि संबंधी उपयुक्त डाटा प्राप्त करने हेतु द्रोण, सेंसर, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, मशीन लर्निंग, ज्योग्राफिकल मैपिंग जैसी नवीनतम तकनीकों का इस्तेमाल करना होगा। इससे विभिन्न कृषि ऑपरेशंस के पहले ही आवश्यक आंकड़े मिल जाएंगे और घर बैठे ही खेत की मॉनिटरिंग भी की जा सकती है। देश में वर्ष 1950 की तुलना में खाद्यान्न उत्पादन में 6 गुनी तथा सब्जी एवं फल उत्पादन में 12 गुनी वृद्धि हुई है किंतु कृषि मे प्रयोग की जाने वाली जमीन का रकबा प्रायः नहीं बढ़ा है। उस दिशा में भी प्रयास की जरूरत है।
बीएयू के कुलपति डॉ ओंकार नाथ सिंह ने कहा कि क्लाइमेट स्मार्ट कृषि उत्पादन और उत्पादकता बढ़ाने में मील का पत्थर साबित होगी। मशीनों और नैनो टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल से बहुत कम इनपुट के इस्तेमाल पर भी फसल को उतना ही पोषण मिलेगा और उत्पादन अच्छा होगा।
वनिकी संकाय के प्रभारी अधिष्ठाता और नाहेप के प्रधान अन्वेषक डॉ एमएस मलिक ने कहा कि हर प्लॉट के बारे में विस्तृत जानकारी अग्रिम में उपलब्ध रहने से वहां से बेहतर उत्पादकता और फसल गुणवत्ता प्राप्त की जा सकती है। सही समय पर कृषि ऑपरेशंस एवं मौसम संबंधित परामर्श देने में भी ये डाटा बहुत उपयोगी साबित होगा।
परियोजना के सह प्रधान अन्वेषक डॉ बीके झा ने कहा कि द्रोण का इस्तेमाल सही चित्र लेने के अलावा फसल के कीड़ों, बीमारियों, पोषक तत्वों की उपलब्धता के आकलन, दवा एवं रसायनों के छिड़काव तथा आंकड़ों के विश्लेषण के लिए भी किया जा सकता है। केंद्रीय योजना के तहत कृषि कार्य में लगी पब्लिक सेक्टर संस्थाओं को शत-प्रतिशत अनुदान पर द्रोण उपलब्ध हो रहा है इसका लाभ लेने के लिए सभी संस्थाओं को आगे आना चाहिए। लेकिन शादी-विवाह और सामाजिक समारोहों में फोटोग्राफी, वीडियोग्राफी के अलावा अन्य उद्देश्यों से इसका इस्तेमाल करने के लिए सरकार से लाइसेंस लेना होगा।
संघवी स्ट्रेटजी एंड कंसल्टिंग
प्राइवेट लिमिटेड की ओर से मिशीगन विश्वविद्यालय यूएसए में कार्यरत सूचना प्रौद्योगिकी विशेषज्ञ रवि सिंह, हिमाचल की कृषि वैज्ञानिक डॉ शुभ लक्ष्मी सिंह तथा आईटी विशेषज्ञ मनीष कुमार, हरिप्रसाद जैन, श्रीकर रेड्डी तथा अजय ने भी स्मार्ट फार्मिंग के विविध पहलुओं पर अपने विचार रखे।

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