भारतीय समाज के आर्थिक एवं पोषण के साधनों में पशुधन का बड़ा महत्व है। पशुओं के रोगों से पूरा भारतीय समाज प्रभावित होता है। गाय में लंपी वायरस के प्रकोप बढ़ने का प्रभाव पूरे देश में देखने को मिल रहा है। इसी तरह मवेशियों में पाया जाने वाला खुरहा-मुंहपका (एफएमडी) एक विषाणुजनित संक्रामक रोग है। यह रोग कोरोना वायरस की तरह ही पशुओं फैलता है। इसका टीकाकरण, नियंत्रण एवं बचाव की सर्वोत्तम साधन है। उक्त विचार एफएमडी जागरुकता एवं नियंत्रण विषयक गोष्ठी में बीएयू कुलपति डॉ ओंकार नाथ सिंह ने बतौर मुख्य अतिथि कही।
डॉ सिंह ने कहा कि इस रोग से पशुपालकों को दूध में कमी एवं पशुओं के अस्वस्थ्य होने से काफी आर्थिक हानि होती है। देश में एफएमडी रोग का फैलाव भी बढ़ रहा है। इसलिए मनुष्य की तरह मवेशियों के विषाणुजनित संक्रामक रोग के प्रति किसान और पशुपालक एवं विशेषकर महिलाओं को जागरूक किये जाने और जागरूक होने की जरूरत है।
निदेशक अनुसंधान डॉ एसके पाल ने मनुष्यों की तरह एफएमडी के रोगों की व्यापक प्रचार-प्रसार पर बल दिया। एफएमडी रोग की जानकारी एवं प्रबंधन को बचाव का उत्तम साधन बताया।
डीन वेटनरी डॉ सुशील प्रसाद ने कहा कि एफएमडी रोग मवेशियों में काफी तेजी से फैलता है। इससे गाय एवं भेंस विशेषकर संकर नस्ल के मवेशी ज्यादा प्रभावित होते हैं। रोग से पशुधन का काफी व्यावसायिक नुकसान होता है। एफएमडी रोग को गांवों एवं क्षेत्र की परिधि तक रोकना बेहद जरूरी है। प्रदेश में पशुपालन कार्यों से बहुतायत महिला जुड़ी हैं। इसलिए महिलाओं को विशेष रूप से जागरूक करना जरूरी है।

डॉ एके पांडे ने कहा कि प्रदेश में वेटनरी डॉक्टर की काफी कमी है। इसलिए किसान एवं पशुपालकों को पशु रोगों एवं रोग प्रबंधन के प्रति जागरूक होना होगा।
स्वागत करते हुए एफएमडी नेटवर्क केंद्र के परियोजना अन्वेषक डॉ एमके गुप्ता ने बताया कि 11 सितम्बर, 2019 को प्रधानमंत्री ने मवेशियों में विषाणुजनित रोगों से बचाव व नियंत्रण के लिए राष्ट्रीय पशु रोग नियंत्रण कार्यक्रम लांच की थी। इस कार्यक्रम की तीसरी वर्षगाठ पर पूरे देश में एफएमडी रोग जागरुकता अभियान सप्ताह किया जा रहा है। कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य एफएमडी रोग के लक्षण, बचाव, नियंत्रण के प्रकार, उपाय, प्रभाव एवं नुकसान के सबंध में लोगों को जागरूक करना है।
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