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कृषि छात्रों ने देहरादून में मृदा, जल व वन संरक्षण तकनीकी को जाना

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छात्रों ने फारेस्ट रिसर्च इंस्टिट्यूट में वन प्रौद्योगिकी आधारित विभिन्न म्यूजियम एवं वन उत्पाद प्रसंस्करण यूनिट का अवलोकन किया। संस्थान के डीन प्रतिनिधि डॉ विश्वजीत ने वन के प्रकार, वन आधारित खेतों, मिट्टी एवं पानी का संरक्षण, विभिन्न वन उत्पाद एवं उनका प्रसंस्करण तकनीकी की जानकारी दी। छात्र दल वन उत्पाद प्रसंस्करण से काफी प्रभावित हुए। छात्रों ने महसूस किया कि झारखंड में अधिक वन क्षेत्र होते हुए वन उत्पाद प्रसंस्करण की सुविधा सीमित है। इसे बढ़ावा देकर बेहतर व्यवसाय की शुरुआत की जा सकती है।

दल ने शनिवार को पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (पीएयू) लुधियाना का भ्रमण किया। वर्ष 1962 में स्थापित देश के दूसरे सबसे पुराने कृषि विश्वविद्यालय परिसर में छात्र दल काफी उत्साहित दिखा। भ्रमण के दौरान छात्रों ने यूनिवर्सिटी के डॉ एमएस रंधावा लाइब्रेरी और म्यूजियम आफ हिस्ट्री एग्रीकल्चर का अवलोकन किया। किसानों द्वारा गेहूं कल्याण सोना किस्म हाथों-हाथ लेने सबंधी जानकारी प्राप्त की। नार्थ इंडिया टूर प्रभारी डॉ अरुण तिवारी एवं डॉ शीला बारला के मार्गदर्शन में भारत की हरित क्रांति में विश्वविद्यालय की अहम भूमिका के बारे में विस्तृत जानकारी हासिल की।

देहरादून स्थित आईसीएआर-केन्द्रीय मृदा एवं जल अनुसंधान संस्थान के भ्रमण के दौरान प्रधान वैज्ञानिक पद्मश्री डॉ लेख चन्द्र ने छात्रों को 1975 में स्थापित सुखाजोरी जलछादन प्रक्षेत्र की स्थापना से कृषि विकास के क्षेत्र में खाद्यान उत्पादन, हराचारा घास एवं पशुधन में अप्रत्याशित बढ़ोतरी की सफलता को बताया। प्रधान वैज्ञानिक डॉ एसएम राणा ने जल एवं भूमि संरक्षण में एकीकृत कृषि प्रणाली के महत्व की व्यावहारिकता से अवगत कराया।

मौके पर छात्र दल के प्रभारी डॉ अरुण कुमार तिवारी एवं डॉ शीला बारला ने भी छात्रों को मार्गदर्शन दिया। दोनों संस्थानों के वैज्ञानिकों का सहयोग के लिए आभार जताया।

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