बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के कृषि संकाय अधीन कार्यरत मृदा विज्ञान विभाग के प्रायोगिक प्रक्षेत्र में सोमवार को विश्व मृदा दिवस के अवसर पर जागरूकता अभियान चलाया गया। इस कार्यक्रम में विवि के कृषि एवं वानिकी संकाय के सैकड़ों छात्र-छात्राएं शामिल हुए।
मौके पर बतौर मुख्य अतिथि कुलपति डॉ ओंकार नाथ सिंह ने कहा कि मिट्टी के बिना जीवन एक कोरी कल्पना हो। खाद्यान सुरक्षा के लिए मिट्टी का स्वास्थ्य प्रबंधन जरुरी है। कृषि एवं अन्य कार्यो में मिट्टी के दोहन एवं प्राकृतिक आपदाओं की वजह से मृदा का स्वास्थ्य एक विकराल रूप धारण करती जा रही है। इस वैश्विक समस्या की पूरे विश्व में काफी चर्चा एवं बचाव के कार्यक्रम चलाये जा रहे है। कृषि विश्वविद्यालय के बहुतायत छात्र-छात्राएं सीधे या अप्रत्यक्ष रूप से ग्रामीण परिवेश से जुड़े हुए है। छात्रों को अपने गांवों में भ्रमण के दौरान सभी किसानों को व्यक्तिगत तौर पर मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन पर जागरूक करना चाहिए।
कुलपति ने कहा कि प्राकृतिक संसाधनों के मामले में झारखण्ड प्रदेश काफी धनी राज्य है। प्रदेश की जलवायु एवं मिट्टी लगभग सभी कृषि कार्यो के लिए बेहद उपयुक्त है। प्रदेश में मृदा स्वास्थ्य को विशेष प्राथमिकता एवं उचित प्रबंधन से देश के अग्रणी कृषि प्रधान राज्य के रूप में स्थापित किये जाने की व्यापक संभावनाएं है।
विशिष्ट अतिथि निदेशक अनुसंधान एवं डीन एग्रीकल्चर डॉ एसके पाल ने कहा कि प्रदेश में अत्यधिक जल बहाव, भूमि अपरदन, अम्लीय भूमि एवं बंजर भूमि एक बड़ी समस्या है। इनका निराकरण के लिए भूमि संरक्षण एवं मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन को विशेष प्राथमिकता तथा किसानों को जागरूक करने की जरूरत है। डीन वानिकी डॉ एमएस मल्लिक ने पर्यावरणीय संतुलन के लिए वन भूमि के स्वास्थ्य प्रबंधन पर ध्यान दिये जाने की आवश्यकता जताया।
डीएसडब्लू एवं अध्यक्ष (मृदा) डॉ डीके शाही ने छात्रों को बताया की यूएनओ के अनुमोदन से वर्ष 2013 से वैश्विक पर विश्व मृदा दिवस मनाया जा रहा है। मौके पर उन्होंने की विश्व मृदा दिवस महत्ता एवं जीवन में मिट्टी के महत्त्व पर विस्तार से चर्चा की। कहा कि मिट्टी को बनाया नहीं जा सकता हैं। प्राकृतिक रूप से एक इंच मिट्टी के निर्माण में करीब एक हजार वर्ष लगते है। मिट्टी हमारी प्राकृतिक धरोहर है और इससे भावी पीढ़ी के लिए हर हाल में बचाया जाना जरुरी है।
मुख्य वैज्ञानिक डॉ बीके अग्रवाल ने कहा कि मिट्टी एक जीवित पदार्थ है। मिट्टी में प्रचुर मात्रा में जैविक पदार्थ तथा लाखों की संख्या में जीवाणु मौजूद होते है। जिनकी कमी से भूमि की गुणवत्ता प्रभावित होती है। असंतुलित उर्वरक प्रयोग, भूमि प्रदुषण, भूमि का कटाव एवं अपरदन आदि वजहों से भूमि की गुणवत्ता में कमी तथा खाद्यान सुरक्षा का भावी संकट है। हमारी भावी पीढ़ी की खाद्यान सुरक्षा के लिए करीब 60 प्रतिशत खाद्यान उत्पादन बढ़ाने की जरुरत होगी। से ही संभव है। आबादी बढ़ती जा रही है, जबकि खेती योग्य भूमि स्थिर एवं सीमित है।
प्रायोगिक प्रक्षेत्र में छात्र-छात्राओं के भ्रमण के दौरान मृदा वैज्ञानिक डॉ प्रभाकर महापात्रा ने छात्रों को 5 दशकों से चलाये जा रहे स्थाई खाद उर्वरक प्रयोग तथा दीर्घ कालीन उर्वरक प्रयोग का फसलों एवं मिट्टी स्वास्थ्य पर प्रभाव की व्यावहारिक जानकारी दी। डॉ बीके अग्रवाल ने फसल अवशेष प्रबंधन, डॉ एसबी कुमार ने मिट्टी जाँच का फसल पर प्रभाव, डॉ डीके शाही ने नैनो उर्वरक का कृषि में उपयोग एवं डॉ आशा कुमारी सिन्हा ने कृषि में बायोचार का प्रयोग एवं लाभ के बारे में व्यावहारिक बातों से अवगत कराया। कार्यक्रम का संचालन एवं धन्यवाद डॉ अरबिंद कुमार ने दी।
मौके पर डॉ सोहन राम, डॉ पीबी साहा, भूपेन्द्र कुमार, डॉ आरबी साह, डॉ बसंत उरांव एवं डॉ अनिल कुमार सहित कृषि एवं वानिकी संकाय के स्नातक एवं स्नातकोत्तर छात्र-छात्राएं भी मौजूद थे।
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