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कृषि आधारित मौसम पुर्वानुमान पर वैज्ञानिको के दस दिवसीय राष्ट्रीय मंथन का समापन

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20 राज्यों से 33 मौसम पुर्वानुमान वैज्ञानिकों ने लिया भाग

देश के विभिन्न जिलों का डायनमिक फसल मौसम कैलेंडर विकसित होगा : पी विजय कुमार  

रांची I बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के कृषि मौसम एवं पर्यावरण विभाग में आईसीएआर की अखिल भारतीय समन्वित परियोजना से जुड़े 20 राज्यों के 21 मौसम पुर्वानुमान परियोजना केन्द्रों के 33 मौसम पुर्वानुमान वैज्ञानिकों ने दस दिनों तक देश में मौसम पुर्वानुमान आधारित कृषि प्रणाली के विकास पर विचार मंथन किया.

सोमवार को इस कार्यक्रम के समापन के अवसर पर मुख्य अतिथि निदेशक अनुसंधान डॉ डीएन सिंह ने कहा कि देश की करीब 60 प्रतिशत भूमि वर्षाश्रित खेती आधारित है. झारखण्ड की 80 प्रतिशत भूमि वर्षाश्रित खेती पर निर्भर है. ऐसी भूमि में फसलों की उत्पादन एवं उत्पादकता को बढ़ाने में मौसम पुर्वानुमान आधारित कृषि प्रणाली की बड़ी भूमिका है. ऐसे कार्यक्रम के बेहतर तकनीकी अनुशंसाओं से टीकाऊ कृषि को बढ़ावा देने में मदद मिलेगी.

मौके पर कृषि मौसम एवं पर्यावरण विभाग के अध्यक्ष डॉ अब्दुल वदूद ने कहा कि

इस राष्ट्रीय विचार मंथन में बदलते मौसम परिवेश का खेती पर असर, मौसम के प्रभाव से खेती-बाड़ी को अप्रभावित रखने और मौसम के प्रभाव को न्यूनता के आधार पर फसल उत्पादन एवं उत्पादकता बनाए रखने के शोध परिणामो, भोगौलिक एवं मौसम परिस्थिति आधारित शोध से प्राप्त अनुशंसाओं के आधार पर किसानों, वैज्ञानिको और योजनाकारों को उचित परामर्श पर विचार-विमर्श किया गया.

आँल इंडिया कोऑर्डिनेटेड रिसर्च प्रोजेक्ट ऑन एग्रोमेटरोलॉजी के राष्ट्रीय परियोजना समन्यवयक डॉ पी विजय कुमार ने बताया कि इस दस दिवसीय मंथन में देश के में बदलते कृषि मौसम परिवेश में बेहतर परामर्श देने पर बल दिया गया. उन्होंने बताया कि इस बैठक में देश के  बीस राज्यों के एग्रोक्लिमैटिक ऑनसेट मूनसून को अलग से बनाने और देश स्तर पर नक्शे का विकास करने की अनुशंसा की गई. दस फसलों में मूंगफली, अरहर , मटर, बाजरा, सोयाबीन, कपास, मडुआ , सूरजमुखी, मक्का और ज्वार जैसे फसलों का सुखाड़ में निगरानी और सुखाड़ की घोषणा में अनुप्रयोग किये जाने वाले अवयवो में मिट्टी में उपलब्ध नमी के आधार बनाने पर सहमती बनी.

डॉ पी विजय कुमार ने कहा कि विभिन्न फसलों के महत्वपूर्ण वृद्धि चरणों और महत्वपूर्ण मौसम मापदंडों पर इष्टतम उत्पादन के लिए मौसम की क्रांतिक स्थिति आधारित अनुशंसाये की गई. इसमें चावल फसल के लिए देश के नौ राज्यों में बिहार, पश्चिम बंगाल, आसाम, उत्तर प्रदेश, छत्तीशगढ़, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और ओडिशा, गेहूं फसल के लिए पंजाब, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, जम्मू व कश्मीर, उत्तर प्रदेश, छत्तीशगढ़ एवं राजस्थान, सरसों फसल हेतु हिमाचल प्रदेश, पश्चिम बंगाल, हरियाणा एवं जम्मू व कश्मीर तथा सोयाबीन की फसल हेतु मध्य प्रदेश एवं महाराष्ट्र को चिन्हित किया गया. देश के कई जिलों की फसलों के उपायों के लिए डायनमिक फसल मौसम कैलेंडर विकसित किया जाएगा।

बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के कृषि मौसम एवं पर्यावरण विभाग के द्वारा भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् (आईसीएआर) की अखिल भारतीय समन्वित शोध परियोजना (एआईसीआर पी) के सौजन्य से मौसम पुर्वानुमान के अनुप्रयोग में क्षमता वृद्धि पर दस दिवसीय राष्ट्रीय प्रशिक्षण कार्यक्रम का शनिवार को शुरूआत  हुआ. कृषि संकाय के प्रेक्षागृह में आयोजित एक समारोह में बीएयू कुलपति डॉ परविंदर कौशल ने बतौर मुख्य अतिथि कार्यक्रम का उद्घघाटन किया. अपने उदबोधन में कुलपति ने बदलते जलवायु के परिवेश में किसानो की विभिन्न मौसम सम्बन्धी समस्याओ एवं उसके निदान में मौसम पुर्वानुमान को बेहद कारगर तकनीक बताया. उन्होंने कहा कि मौसम के सटीक पुर्वानुमान से कृषि को लाभकारी बनाने को बल मिला है.

उन्होंने कहा कि पर्यावरण की दृष्टि से मौसम अत्यंत ही महत्वपूर्ण तत्त्व है, क्योंकि जमीन, जल, जंगल, जंतु तथा वायु पर्यावरण के अन्य घटक मौसम से ही प्रभावित होते हैं. भारत जैसे मानसूनी जलवायु के क्षेत्र में तो वर्ष कई स्पष्ट मौसमों में विभक्त रहता है. विभिन्न मौसम के जो अलग-अलग स्वरूप हैं ,उनका हमारे पर्यावरण पर भिन्न-भिन्न प्रभाव पड़ता है. ये हमारी अर्थव्यवस्था को भी विभिन्न प्रकार से प्रभावित करते हैं. इसलिए मौसम का पूर्वानुमान काफी लाभप्रद एवं महत्वपूर्ण विषय है. आने वाले मौसम के बारे में समय रहते पूर्व में ही जानकारी हो जाने पर भविष्य में पर्यावरण एवं अर्थव्यवस्था संबंधी योजनाएं पहले से ही बनाई जा सकती हैं. इस कार्यक्रम के माध्यम से विश्वविद्यालय में पूरे देश के मौसम पुर्वानुमान वैज्ञानिकों के जुटने से झारखण्ड राज्य के कृषि परिस्थिति के अनुरूप तकनीकों के विस्तारीकरण को बल मिलेगा.

मौके पर आईसीएआर – एआईसीआरपी के परियोजना समन्वयक डॉ पी कुमार ने बताया कि पूरे देश के 35 केन्द्रों में कृषि आधारित मौसम पुर्वानुमान पर शोध कार्यक्रम चलाये जा रहे है. मौसम एवं कृषि के बदलते परिवेश में कई नए विकल्पों पर शोध किये जा रहे है. शोध से प्राप्त तकनीकों के बेहतर अनुप्रयोग से क्षमता वृद्धि एवं आगामी रणनीति पर विचार-विमर्श के उद्देश्य से इस कार्यक्रम का आयोजन किया गया है. इसमें मौनसून के देर से आने, मौनसूनी वर्षा के अन्तराल में फर्क आने, मौसम आधारित फसल प्रादर्श और फसल – मौसम पुर्वानुमान पर  आगामी शोध विषय पर चर्चा होगी. मौके पर निदेशक अनुसंधान डॉ डीएन सिंह ने झारखण्ड की वर्षाश्रित कृषि में मौसम के महत्त्व पर प्रकाश डाला.

स्वागत भाषण में कृषि मौसम एवं पर्यावरण विभाग के अध्यक्ष डॉ अब्दुल वदूद ने बताया कि विश्वविद्यालय में वर्ष 1985 से आईसीएआर – एआईसीआरपी की मौसम पुर्वानुमान परियोजना कार्यरत है. मौके पर उन्होंने द्विश्वविद्यालय द्वारा राज्य में चलाये जा रहे मौसम पुर्वानुमान कार्यक्रम एवं सेवाओं की जानकारी दी.

धन्यवाद ज्ञापन परियोजना प्रभारी डॉ प्रज्ञा कुमारी ने दिया. इस अवसर पर देश के 35 मौसम पुर्वानुमान के साथ डॉ एमएस यादव, डॉ राघव ठाकुर, डॉ जेडए हैदर,डॉ सुशील प्रसाद,डॉ आरआर उपासनी, डॉ एसके पाल, डॉ पीके सिंह, डॉ रमेश कुमार एवं डॉ डीके शाही भी मौजूद थे.

अनुशंसाएँ:

बीस राज्यों के एग्रोक्लिमैटिक ऑनसेट मूनसून को अलग से बनाया जाएगा और वे देश स्तर के नक्शे पर आएंगे।

मूंगफली, कबूतर, मटर, उंगली बाजरा, सोयाबीन, कपास, मोती बाजरा, सूरजमुखी, मक्का और ज्वार जैसे दस फसलों की सूखा निगरानी और सूखा घोषणा के लिए उपलब्ध मिट्टी की नमी विकसित की जाएगी।

फसलों के महत्वपूर्ण चरणों में, महत्वपूर्ण मौसम मापदंडों, नौ राज्यों के लिए चावल की फसल के लिए इष्टतम उत्पादन के लिए मौसम की स्थिति का थ्रेशोल्ड – बिहार, पश्चिम बंगाल, अस्सलाम, अटरैड प्राडेश, चेटिशगढ़, मद्यप्रदेश, महाराष्ट्र और ओडिशा।

जम्मू और कशमीर के लिए गेहूं की फसल के लिए इसी तरह, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, हरियाना, प्रतापगढ़, छत्तीसगढ़ और राजस्थान।

हिमाचल प्रधान, पश्चिमी चूड़ी, हरियाण और जामू और कशमीर के लिए सरसों की फसल के समान।

माद्य प्रदेष और महाराष्ट्र के लिए सोयाबीन की फसल के समान।

देश के कई जिलों की फसलों के उपायों के लिए डायनमिक फसल मौसम कैलेंडर विकसित किया जाएगा।


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