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व्यावसायिक मशरूम उद्यमिता के गुर सीखेंगे कृषि स्नातक विद्यार्थी

बिरसा कृषि विश्‍वविद्यालय के कृषि स्‍नातक विद्यार्थी व्यावसायिक मशरूम उद्यमिता के गुर सीखेंगे। डीन एग्रीकल्चर डॉ एमएस यादव के निर्देश पर चार एग्रीकल्चर कॉलेज के विद्यार्थियों को ऑनलाइन व्यावहारिक प्रशिक्षण से घरों में व्यावसायिक मशरूम उद्यम प्रोजेक्ट करने को कहा गया है। कृषि स्नातक में अंतिम वर्ष, 8वें सेमेस्टर के सभी छात्रों के लिए एक्सपीरियंस लर्निंग प्रोग्राम (ईएलपी) अनिवार्य है। लॉकडाउन के दौरान 7 वें सेमेस्टर में  छात्रों ने स्थानीय ग्रामीण परिवेश में रूरल एग्रीकल्चरल वर्क एक्सपीरियंस (रावे) प्रोग्राम को पूरा कर लिया है।

डॉ यादव ने बताया कि कोविड-19 दिशा- निर्देश के आधार पर सभी चार एग्रीकल्चर कॉलेज के कुल 204 छात्र-छात्राएं ईएलपी गतिविधियों को अपने घरों में ही पूरा करेंगे। इस टास्क को पूरा करने पर ही छात्रों को एग्रीकल्चर ग्रेजुएट की डिग्री प्रदान की जायेगी।

सभी छात्र-छात्राओं को वर्चुअल माध्यम से मशरूम उत्पादन की प्रौद्योगिकी की बारीकियों पर व्यावहारिक प्रशिक्षण दिया जा रहा है। प्रोग्राम के प्रबंध निदेशक डॉ नरेंद्र कुदादा और प्रबंधक डॉ एचसी लाल छात्रों को प्रशिक्षित कर रहे है। छात्रों को रविन्द्रनाथ टैगोर एग्रीकल्चर कॉलेज, देवघर के प्रबंधक डॉ  प्रियंका नंदी व डॉ परितोष कुमार, तिलका मांझी एग्रीकल्चर कॉलेज, गोड्डा के प्रबंधक डॉ रविकांत रजक और एग्रीकल्चर कॉलेज, गढ़वा के प्रबंधक डॉ राहुल तिवारी व सर्वेश कुमार द्वारा जरूरत के अनुरूप मार्गदर्शन प्रदान किया जा रहा है।

ईएलपी पाठ्यक्रम में सभी छात्रों को कोविड-19 के निर्देशों का पालन करते हुए अपने घरों में खाद्य प्रसंस्करण व सुरक्षा मानक के तहत आम आचार तथा मशरूम उत्पादन प्रौद्योगिकी सबंधी दो उद्यमों पर कार्य करने को कहा गया है। आम आचार उद्यम का कार्य छात्रों ने पूरा कर लिया है। मशरूम उद्यम की शुरुआत के लिए बीएयू की मशरूम उत्पादन इकाई के फील्ड ओवरशियर मुनी प्रसाद द्वारा विभिन्न माध्यमों से छात्रों को 300 ग्राम के दो पैकेट में मशरूम बीज (स्पॉन) मुहैया कराया जा रहा। इस स्पॉन से छात्र ग्रीष्मकालीन सफेद दूधिया मशरूम का उत्पादन करेंगे।

रांची की छात्रा दिव्या राज भारती ने इस प्रोग्राम को छात्रों के लिए बेहद खास अनुभव बताया है। घर में ही मशरूम उत्पादन करने के प्रति सभी साथी छात्र उत्साहित है।

रांची की ही छात्रा मासूम अंसारी, गढ़वा की छात्रा रीतू गुप्ता व प्रेरणा, देवघर की छात्रा फातिमा अराईश व आलिया अख्तर एवं गोड्डा की छात्रा खुशबू शाहीन व छात्र आलोक नंदा ने ईएलपी कार्यक्रम को चुनौती एवं कौशल विकास का महत्वपूर्ण पल बताया है। कोरोनाकाल में सीमित संसाधन में घर में रहकर उद्यम की शुरुआत करने के इस अवसर को काफी सार्थक बताया है। छात्रों ने लॉकडाउन में अभिवावक एवं पारिवारिक सदस्यों के लिए भी बेहद ज्ञानवर्धक एवं उपयोगी बताया है।

छात्रों को प्रोजेक्ट मोड में दोनों उद्यमों का व्यावहारिक ज्ञान और व्यावसायिक कौशल, बिज़नस प्लान, उत्पाद निष्पादन, विपणन, लेखा एवं प्रबंधन कौशल का बैंकिंग प्रोजेक्ट एवं ईएलपी रिपोर्ट सबंधित कॉलेज में जमा करनी होगी।

ऑनलाइन व्यावहारिक प्रशिक्षण में छात्रों को दूधिया सफेद मशरूम के गुण, उत्पादन तकनीक एवं सावधानियों के बारे में बताया जा रहा है।

दूधिया सफेद मशरूम के गुण

बीएयू मशरूम उत्पादन इकाई के प्रभारी डॉ नरेंद्र कुदादा ने बताया कि बड़े आकार के ग्रीष्मकालीन सफेद दूधिया मशरूम को दूध छत्ता भी कहा जाता है। यह विटामिन-सी एवं विटामिन-बी काम्प्लेक्स का मुख्य श्रोत है। इसके सूखे खूम्भी में पोषक तत्वों में 17.69 प्रतिशत प्रोटीन, 4.1 प्रतिशत वसा, 64.26 प्रतिशत कार्बोहाईड्रेट, 3.4 प्रतिशत रेशे एवं लवण, पोटैशियम, फ़ास्फ़ोरस, कैल्शियम और मैग्नीशियम आदि मुख्य रूप से पाये जाते है।

दूधिया मशरूम के गुण

पौध रोग वैज्ञानिक डॉ एचसी लाल ने बताया कि दूधिया मशरूम को धान के पुआल की कुट्टी पर उगाया जाता है। सबसे पहले कुट्टी को उबलते पानी में 2-3 घंटे तक भि‍गोकर अथवा रसायनों (100 लीटर पानी में 10 ग्रा बेविस्टीन, 100 मिली। फार्मलीन के मिश्रण में 12 घंटे तक डूबोकर) द्वारा विसंक्रमित किया जाता है। इसके बाद कुट्टी को निकालकर छायादार फर्श (पक्का) पर फैला देते है। जब उससे पानी का रिसना बंद हो जाता है, तब उसे पॉलिथीन बैग (60 X 40 से।मी।, क्षमता 3 किलो) में भरकर स्पॉन की बिजाई कर दिया जाता है।

पुनः पॉलिथीन बैग में 10 से।मी। कुट्टी डालने के बाद सतही बिजाई की जाती है। इसके बाद 5 सेमी तक कुट्टी डालकर फिर बिजाई करते है। बिजाई की तहों में 4 प्रतिशत बीज स्पॉन से की जाती है। फिर पॉलिथीन बैग में तीन चौथाई तक पानी भरा जाता है। बैग के खुले मुंह को रबर के बांधकर बंद कर दिया जाता है। वायु संचार के लिए बैग के उपरी भाग में 10-15 छेद बना दिये जाते हैं। बैग में कवक जाल की वृद्धि पूर्ण होने पर पॉलिथीन बैग को काटकर अलग कर लिया जाता है। अब इसमें 2.5 सेमी। मिट्टी का मोटी आवरण लगते है। इस आवरण के लिए मिट्टी के साथ पूर्ण सड़ी हुई गोबर का इस्तेमाल करनी चाहिए। मिट्टी आवरण लगाने के 10-15 दिनों के बाद नन्हें छत्रक उभर आते है। इसके 5-6 दिनों के बाद छत्रक तैयार हो जाते हैं। इन्हें तोड़ लिया जाता है। छत्रकों को उंगलियों से घुमाकर जड़ सहित निकाल लेना चाहिए। इसउप्रकार 3 से 4 तुड़ाई की जा सकती है। हर तुड़ाई के बाद पिण्डों पर पानी का छिडकाव किया जाना जरूरी है। एक बैग में 200 ग्रा स्पॉन (मूल्य 20 रुपये) की जरूरत होती है। एक बैग से एक-डेढ़ किलो मशरूम का उत्पादन मिलता है। जिसका बाजार मूल्य 200 रुपये है।

मशरूम उत्पादन में सावधानी का जिक्र करते हुए डॉ लाल ने कहा कि स्पॉन (मशरूम बीज) की गुणवत्ता को ध्यान में रखते हुए बीज को अनुशंषित प्रयोगशाला से ही लें। ताजे पुआल कुट्टी का उपयोग, जीवाणु संक्रमण से बचाव के लिए क्लोरीन जल का छिडकाव, गृह में प्रकाश एवं वायु संचार हरतु रौशनदान, 25 से 35 डिग्री का तापक्रम एवं 90 प्रतिशत आद्रता तथा आवरण उदासीन रखनी चाहिए।

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