विश्व आदिवासी दिवस पर मंगलवार को बिरसा कृषि विश्वविद्यालय में जनजातीय संस्कृति से जुड़े गीत, नृत्य, संगीत, नाटक का रंगारंग कार्यक्रम आयोजित किया गया।
विश्वविद्यालय के छात्र-छात्राओं ने देश के विभिन्न जनजातीय समूहों की भौगोलिक, सांस्कृतिक और भाषाई पृष्ठभूमि की पार्श्व प्रस्तुति के बीच मुंडा, उरांव, हो, नागपुरी, संथाल, भूमिज, खड़िया, बंजारा, नगेसिया, पहाड़िया, चिक बड़ाईक, गोंड, संभलपुरी, बैगा, खरबार, महली जनजातियों की पारंपरिक वेशभूषा में कैटवॉक प्रस्तुत किया। संथाल, मुंडा, उरांव और मिश्रित नागपुरी शैली में सामूहिक नृत्य की भी प्रस्तुति हुई। बिरसा भगवान के जीवन और योगदान पर एकांकी का भी मंचन हुआ।
अपने अध्यक्षीय संबोधन में कुलपति डॉ ओंकार नाथ सिंह ने कहा कि व्यक्तित्व के बहुआयामी विकास के लिए पढ़ाई के साथ साथ खेलकूद एवं सांस्कृतिक गतिविधियों में भी भाग लेना आवश्यक है। संस्कृति के संरक्षण के लिए घर में सभी लोग अपनी परंपरागत मातृ भाषा बोलें किंतु आगे बढ़ने के लिए राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय भाषा में भी दक्षता हासिल करना जरूरी है। टेलेंट के मामले में मीणा जनजाति एक उदाहरण है, इस समाज से आने वाले आईएएस और आईपीएस अधिकारी प्रायः प्रत्येक राज्य में मिल जाएंगे। अनुशासन के बिना कोई समाज आगे बढ़ नहीं सकता इसलिए हम सबों को अनुशासित और समन्वित प्रयास से संस्था को आगे बढ़ाने का प्रयास करना चाहिए। कुलपति ने कहा कि प्रबंध पर्षद के अनुमोदन की प्रत्याशा में विश्वविद्यालय के दैनिक मजदूर का वर्गीकरण कर दिया गया है जिससे अधिकांश मजदूरों को अब बढ़ी हुई दर पर मजदूरी का भुगतान होगा।
समारोह के मुख्य अतिथि कांके के विधायक समरी लाल ने कहा कि आजादी की लड़ाई, देश के विकास, प्रकृति के संरक्षण और देश की रक्षा में जनजातीय समाज का अतुलनीय योगदान है। आदिवासी सौम्यता, सरलता, ईमानदारी, कर्मनिष्ठा और मेहनत का प्रतीक हैं।
इस अवसर पर विश्वविद्यालय के अधिष्ठाता डॉ एसके पाल, डॉ एमएस मलिक, डॉ सुशील प्रसाद, प्रसार शिक्षा निदेशक डॉ जगरनाथ उरांव, कुलसचिव डॉ नरेंद्र कुदादा, कर्मचारी प्रतिनिधि दिनेश टोप्पो कथा कई छात्र छात्राओं ने विश्व आदिवासी दिवस की पृष्ठभूमि तथा जनजातीय समाज की विशेषताओं और समृद्ध सांस्कृतिक विरासत पर प्रकाश डाला।
कार्यक्रम का संचालन प्रगति मुर्मू तथा समन्वयन डॉ बसंत चंद्र उरांव और डॉ राम प्रसाद मांझी ने किया।
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